रास्ते में माल  की जांच  - क्या कहता  है कानून
      कर चोरी रोकने  के लिए  परिवहनित माल  की रास्ते  में जांच  की जाती  है तथा  यदि अनियमितता  मिलती है  तो विभागीय  अधिकारियों को माल एवं वाहन  को जब्त  करने तथा  पेनल्टी एवं  टैक्स आरोपित  करने का  अधिकार होता  है। विभिन्न  परिस्थितियों में क्या कार्यवाही विभाग  करता है  तथा वह  कार्यवाही कितनी जायज होती है  यह न्यायालय  तय करता  है। माल  की जब्ती  एवं पेनल्टी  के संबंध  में कई  निर्णय न्यायालय  द्वारा पारित  किये जा  चुके है  जिनकी जानकारी  हम इस  लेख में  दे रहे  है- 
      पिटिशनर के बैंक  गारंटी जमा  करवाने की  अवस्था में  माल को  छोडऩे के  आदेश 
       पिटिशनर ने डिटेनशन  आर्डर को  चुनौती देते  हुए माननीय  न्यायालय को  बताया कि  उसने टैक्स  इनवाइस एवं  ई-वे  बिल के  आधार माल  का परिवहन  किया था,  परन्तु उसके  माल को  गलत क्लासिफिकेशन  करने के  आधार पर  डिटेन कर  लिया गया।  पिटिशनर ने  बताया कि  गलत क्लासिफिकेशन  पर विभाग  एक सैम्पल  निकाल सकता  था। लेकिन  माल को  डिटेन करना  गलत है। 
      माननीय न्यायालय ने  पाया कि  माल को  समुचित बैंक  गांरटी जमा  करवाने पर  छोड़ा जा  सकता है। 
       माननीय न्यायालय ने  पिटिशनर को  एक सप्ताह  में बैंक  गांरटी जमा  करवाने को  कहा तथा  विभाग को  सैम्पल लेने  के बाद  माल को  छोडऩे के  आदेश दिए ।  विभाग को  न्याय निर्णय  की प्रक्रिया  भी तीन  सप्ताह में  पूरे करने  के निर्देश  दिए - शाईन  प्लास्ट बनाम  असिसटेंट स्टेट  टैक्स ऑफिस  (2021) 32 टैक्सलोक.कोम 007 (केरला) 
      बिना ई-वे बिल के  माल के  परिवहन पर  माल रोकना  जायज 
       पिटीशनर द्वारा परिवहनित  माल के  साथ ई-वे बिल  नहीं था  इस कारण  माल को  रोक लिया  गया। न्यायालय  ने कहा  कि बिना  ई-वे  बिल के  परिवहनित माल  को रोकने  को गलत  नहीं माना  जा सकता।  न्यायालय ने  बैंक गारंटी  प्रस्तुत करने  की शर्त  पर माल  छोडऩे के  आदेश दिये  — फ्रार्सिस डी सेल्स प्रेस बनाम  एसिसटेन्ट सेल्स टैक्स अधिकारी (2020) 30 टैक्सलोक.कोम 071 (केरला) 
      ई-वे बिल  में जॉब  वर्क की  राशि लिखने  पर माल  रोकना गलत 
       पिटीशनर द्वारा जॉब  वर्क करके  माल वापस  भेजा जा  रहा था।  जॉब चार्जेज  का 3469.76 का इनवाइस बनाया गया  तथा इसी  राशि को  माल के  मूल्य के  रूप में  ई-वे  बिल में  दिखाया गया  जबकि माल  का वास्तविक  मूल्य 8,27,708/-रू. था। ऐसा जॉब  वर्कर ने  इसलिए किया  ताकि इनवाइस  एवं ई-वे बिल  में एक  समान राशि  दिखाई जा  सके। माल  का मूल्य  ई-वे  बिल में  कम दिखाने  के आधार  पर माल  को रास्ते  में रोक  लिया गया। 
       न्यायालय ने अपने  निर्णय में  कहा कि  माल का  विवरण एवं  मात्रा में  कोई अंतर  नहीं है  तथा इनवाइस  की राशि  को ही  ई-वे  बिल में  माल के  मूल्य के  रूप में  दिखाया गया  है। यह  माल रोकने  का आधार  नहीं हो  सकता है।  इस कारण  न्यायालय ने  माल छोडऩे  का आदेश  पारित किया  - पी.एच.  मोहम्मद कुन्जर  एण्ड ब्रदर्स  बनाम एसिसटेंट  स्टेट  टैक्स ऑफिसर  (2020) 30 टैक्सलोक.कोम 072 (केरला) 
      अपील की वैकल्पिक  सुविधा उपलब्ध  होने के  आधार रिट  खारिज 
       पिटिशनर ने धारा  130 में पारित  आदेश के  विरुद्ध यह  अपील पेश  की है।  सरकारी वकील  ने न्यायालय  को बताया  कि पिटिशनर  के पास  धारा 107 में  अपील करने  की वैकल्पिक  सुविधा उपलब्ध  है इसलिए  रिट को  खारिज किया  जाये। न्यायालय  ने अपील  की सुविधा  उपलब्ध होने  के आधार  पर रिट  को खारिज  कर दिया  - जायसवाल स्टील ट्रेडर्स बनाम स्टेट  ऑफ उत्तरप्रदेश  (2020) 30 टैक्सलोक.कोम 050 (इलाहाबाद) 
      ई-वे बिल  माल के  गतंव्य तक  पहुंचने तक  जरूरी, न  कि माल  को उतारने  तक 
       पिटिशनर का ई-वे बिल  दिनांक 01.01.2019 तक जारी  किया हुआ  था। पिटिशनर  ने बताया  कि उनका  माल गतंव्य  तक 01.01.2019 को पहुंच गया, परंतु  किसी कारण  से माल  02.01.2019 को उतारा गया। विभाग ने  माल एवं  वाहन को  धारा 129 के  तहत डिटेन  किया, और  बताया कि  माल के  निरीक्षण के  समय ई-वे बिल  की वैद्यता  खत्म हो  चुकी थी। 
       माननीय न्यायालय ने  पाया कि  माल गतंव्य  तक ई-वे बिल  खत्म होने  से पहले  पहुंच चुका  था। इसी  आधार पर  माननीय न्यायालय  ने विभागीय  आर्डर व  नोटिस को  निरस्त कर  दिया - हेमन्त  मोटर्स बनाम  स्टेट ऑफ  कर्नाटका एवं  अन्य (2020) 30 टैक्सलोक.कोम 092 (कर्नाटका) 
      कर मुक्त माल  के परिवहन  के लिए  डिलिवरी चालान  आवश्यक 
       पिटीशनर ने माल  की खरीद  एक कृषक  से की  जो कि  एक अपंजीकृत  व्यवहारी है।  माल की  खरीद पर  पिटीशनर को  रिवर्स चार्ज  के तहत  टैक्स का  भुगतान करना  है इसलिए  उसने अपना  इनवाइस जनरेट  किया तथा  ई-वे  बिल जनरेट  करके माल  का परिवहन  प्रारंभ किया।  माल कर  मुक्त होने  के बावजूद  भी उसका  ई-वे  बिल जनरेट  किया गया।  परिवहन के  दौरान जांच  में माल  एवं व्हीकल  को रोक  लिया गया।  इसका कारण  बताया गया  कि माल  के कर  मुक्त होने  पर विक्रेता  का डिलिवरी  चालान इसके  साथ होना  आवश्यक था  तथा माल  के क्लासिफिकेशन  पर भी  आपत्ति पेश  की गई।  साथ ही  विक्रेता के  अपंजीकृत होने  को भी  आधार बनाया  गया क्योंकि  अन्तर्राज्जीय सप्लाई होने के कारण  विक्रेता का  पंजीकृत होना  आवश्यक है।  अन्तर्राज्जीय बिक्री के मामले में  माल के  क्रेता का  इनवाइस वैध  दस्तावेज नहीं  माना जा  सकता है। 
       पिटीशनर का कहना  है कि  चूँकि विक्रेता  एक किसान  है इसलिए  धारा 23(1)(b) के  प्रावधान के  तहत उसे  जीएसटी के  तहत पंजीकरण  कराने की  आवश्यकता नहीं  है। 
       न्यायालय ने अपने  निर्णय में  कहा कि  यह सही  है कि  माल के  साथ वैध  ई-वे  बिल था  जिसमें माल  को एच.एस.एन.  910 के तहत  कर मुक्त  माल बताया  गया है।  चूंकि कन्साइनर  एक अपंजीकृत  व्यक्ति है  तथा माल  कर मुक्त  प्रकृति का  है इसलिए  ई-वे  बिल के  अतिरिक्त उसके  साथ कन्साइनर  का चालान  भी होना  जरूरी है।  चूंकि माल  के साथ  डिलिवरी चालान  नहीं था  इस लिए  माल को  रोका जाना  जायज माना  जायेगा। अब  प्रश्न यह  उठता है  कि इसमें  पिटीशनर का  दायित्व क्या  होगा जो  कि माल  को छुड़वाना  चाहता है।  इस मामले  में माल  का क्लासिफिकेशन  तथा कन्साइनर  का अपंजीकृत  होना धारा  129 के तहत  मायने नहीं  रखता है  लेकिन धारा  129(1)(b)  के प्रावधान  के तहत  माल छुड़ाने  के लिए  निर्धारित राशि का भुगतान करना  होगा। इस  धारा के  तहत माल  के मूल्य  के 5 प्रतिशत  या 25,000/- रू. जो दोनों में  कम हो  का भुगतान  करके माल  छुड़वाया जा  सकता है।  न्यायालय ने  यह राशि  चुकाने पर  माल छोडऩे  का आदेश  दिया - मोहम्मद  शरीफ बनाम  स्टेट ऑफ  केरला एवं  अन्य (2020) 30 टैक्सलोक.कोम 002 (केरला) 
      माल के मिस  क्लासीफिकेशन के आधार पर उसे  रास्ते में  नहीं रोका  जा सकता 
       पिटीशनर के माल  को रास्ते  में जांच  के दौरान  इस कारण  रोक लिया  गया कि  परिवहनित माल  का क्लासीफिकेशन  सही नहीं  किया गया  था। 
       न्यायालय ने अपने  निर्णय में  कहा कि  यदि माल  के क्लासीफिकेशन  को लेकर  कोई आपित्त  थी तो  उसके संबंध  में रिर्पोट  तैयार करके  संबंधित कर  निर्धारण अधिकारी  को भेजी  का सकती  है तथा  वह निर्धारण  के समय  इस पर  विचार कर  सकता है।  माल के  मिस-क्लासीफिकेशन  के आधार  पर माल  को रास्ते  में नहीं  रोका जा  सकता है। 
       न्यायालय ने विभाग  के नोटिस  को खारिज  कर माल  छोडने के  आदेश जारी  किये - अशरफ  अली बनाम  एसिसटेंट सेल्स  टैक्स ऑफिसर  एवं अन्य  (2020) 29 टैक्सलोक.कोम 026 (केरला) 
      बिना सुनवाई का  अवसर दिये  धारा 130 में  पारित आदेश  खारिज 
       रास्ते में माल  की जाँच  के दौरान  पाया गया  कि माल  के साथ  पूरे डाक्यूमेन्ट्स  नहीं है  तथा डाक्यूमेन्ट्स  डिफेक्टिव पाये गए है तथा  ई-वे  बिल भी  उपलब्ध नहीं  है। पिटीशनर  को MOV-10  में कारण  बताओ नोटिस  25 जुलाई 2020 को जारी किया गया।  इसके साथ  ही MOV-11  में 25 जुलाई  2020 को ही  आदेश भी  पारित कर  दिया गया।  पिटीशनर का  कहना है  कि बिना  सुनवाई का  अवसर दिये  ही जब्ती  का आदेश  धारा 130 में  पारित कर  दिया गया  है। 
       न्यायालय ने कहा  कि बिना  सुनवाई का  अवसर दिये  जारी आदेश  सही नहीं  माना जाता  इसलिए इसे  खारिज किया  जाता है।  न्यायालय ने  सुनवाई का  अवसर प्रदान  करके पुन:  आदेश पारित  करने का  आदेश दिया  — पी.एन.  टोबाको बनाम  स्टेट ऑफ  गुजरात (2020) 29 टैक्सलोक.कोम  061 (गुजरात) 
      MOV-11 नोटिस में  बिना कारण  दर्ज किये  माल एंव  व्हीकल को  जब्त करना  गलत 
      पिटीशनर का माल  22-9-2020 को जारी दो इनवाइस द्वारा  डिसपेच किया  गया। इनवाइस 22-9-2020 को  तैयार किये  गये तथा  ई-वे  बिल 4.14 बजे  तथा 4.17 बजे  तैयार किये  गये। ट्रांसर्पोटर  ने माल  के लिए  गाड़ी सुबह  भेजने को  कहा तथा  23-9-2020 को प्रात: 3 बजे गाड़ी लोड  हो कर  रवाना की  गई। विभाग  का मानना  है कि  चैक पोस्ट  पर लगे  कैमरों के  अनुसार व्हीकल  एक बार  22-9-2020 की रात को वहां से  निकला तथा  सुबह वह  वापस चैक  पोस्ट से  लौट कर  आया इससे  यह स्पष्ट  होता है  कि एक  ही ई-वे बिल  से दो  बार माल  का परिवहन  किया गया  है। ड्राइवर  एंव मैंनेजर  के बयानों  के बाद  विभाग ने  धारा 130 में  माल जब्ती  के लिए  MOV-11 में  नोटिस जारी  किया। 
       पिटीशनर का कहना  है कि  धारा 130 में  कार्यवाही से पहले उसे सुनवाई  का अवसर  नहीं दिया  गया तथा  विभाग ने  नोटिस MOV-11 में माल जब्ती का कोई  कारण भी  नहीं बताया।  न्यायालय ने  माना कि  MOV-11 के  कॉलम 5 में  माल जब्ती  का कारण  लिखना होता  है जिसमें  विभाग ने  कोई जानकारी  नहीं दी  है। ऐसा  लगता है  कि विभाग  ने बिना  अपना दिमाग  इस्तेमाल किये  माल जब्ती  का आदेश  पारित किया  है। 
       न्यायालय ने माल  जब्ती के  आदेश को  खारिज करते  हुए मामले  की सुनवाई  कर निर्णय  पारित करने  का आदेश  दिया — चीनू  अल्फा एलोय  प्रा. लि.  बनाम स्टेट  टैक्स ऑफिसर  (2020) 29 टैक्सलोक.कोम 022 (केरला) 
      जब्ती की कार्यवाही  पेन्डिग होने  के कारण  न्यायालय का  मामले में  दखल देने  से इंकार 
       पिटीशनर सुपारी का  व्यापार करता  है। उसे  दिल्ली की  पार्टी से  सुपारी सप्लाई  करने का  आदेश प्राप्त  हुआ जिसके  तहत उसने  तीन इनवाइस  से माल  दिल्ली की  पार्टी को  भेजा। माल  एक व्हीकल  में लोड  करके ई-वे बिल  तीनों इनवाइस  का 01.08.2020 को जनरेट किया गया।  माल की  जांच रात  8.30 बजे सोनगढ़-सूरत रोड  पर की  गई तथा  MOV-01 में  स्टेटमेंट दर्ज किया गया। धारा  129 के तहत  व्हीकल एवं  माल को  सीज कर  लिया गया।  MOV-06 में  जो नोटिस  जारी किया  गया उसमें  बताया गया  कि माल  सूरत एवं  राजकोट में  उतारा जाना  था तथा  व्यापार स्थल  पर ना  कोई व्यक्ति  उपलब्ध था  तथा ना  ही कोई  माल या  बुक्स ऑफ  एकाउन्ट्स उपलब्ध थे। दो इनवाइस  में सप्लायर  का जीएसटी  नम्बर नहीं  लिखा हुआ  था। इसके  अलावा माल  की जांच  में 5000 किलो  अतिरिक्त माल  पाया गया।  इसके अतिरिक्त  सप्लायर द्वारा  पूर्व में  प्रस्तुत की  गई रिटर्न  में भी  कई कमियां  पाई गई  जिससे मामले  में शक  पैदा होता  है। 
       न्यायालय ने कहा  कि अभी  मामले में  MOV-10 जारी किया  गया है  जिसमें पिटीशनर  को कारण  बताओ नोटिस  जारी किया  गया है  कि क्यों  ना उसके  माल एवं  व्हीकल को  धारा 130 के  तहत जब्त  कर लिया  जाये। पिटीशनर  चाहता है  कि उसके  माल एवं  व्हीकल को  छोडे जाने  का आदेश  पारित किया  जाये। अभी  चूंकि जब्ती  की कार्यवाही  चल रही  है इसलिए  न्यायालय इस  समय मामले  में दखल  नहीं दे  सकता है।  हम चाहते  है कि  पिटीशनर जब्ती  की कार्यवाही  में शामिल  हो तथा  यह साबित  करें कि  उसका मामला  जब्ती का  नहीं बनता  है। यदि  पिटीशनर माल  एवं व्हीकल  को प्रोविजनली  छुडवाना चाहता  है तो  वह धारा  67(6) में संबंधित अधिकारी के समक्ष  आवेदन पेश  करें। यदि  वह ऐसा  करता है  तो हम  देखेंगे कि  संबंधित अधिकारी  शीघ्रता पर  उस पर  कार्यवाही कर कानूनन आदेश पारित  करें। इन  विचारों के  साथ न्यायालय  ने रिट  का निपटारा  किया - राजेश  किरण डी  बनाम ज्वाइंट  कमिश्नर ऑफ  स्टेट टैक्स  (2020) 29 टैक्सलोक.कोम 046 (गुजरात) 
      व्हीकल की जब्ती  के बदले  टैक्स एवं  पेनल्टी की  राशि नकद  में जमा  कराने के  निर्देश 
       पिटीशनर व्हीकल जिसमें  माल परिवहनित  किया जा  रहा था  का रजिस्टर्ड  मालिक है  तथा उसके  वाहन द्वारा  परिवहनित माल  पर कर  चोरी के  आरोप में  उसके व्हीकल  को रोके  जाने के  कारण उसने  न्यायालय के  सामने यह  याचिका पेश  की है।  उसका कहना  है कि  माल के  मालिक का  कोई पता  नहीं लग  रहा है  तथा ऐसी  परिस्थिति में हालांकि धारा 130 में  जब्ती की  कार्यवाही पूरी कर ली गई  है इसलिए  उसके व्हीकल  की जब्ती  न करके  रिडम्शन फाईन  के रूप  में सिक्योरिटी  जमा करके  छोडऩे के  आदेश दिये  जाये। 
       सरकारी वकील का  कहना है  कि वाहन  को तभी  छोड़ा जा  सकता है  जब वाहन  मालिक माल  पर देय  टैक्स, धारा  122 के तहत  वाहन पर  लगने वाली पेनल्टी  तथा जब्ती  के स्थान  पर वाहन  पर देय  रेडम्शन फाईन  का भुगतान  करें। उनका  कहना है  कि इन  तीनों पर  कुल मिला  कर 4,21,200/- रु बनते है, तथा  चूंकि व्हीकल  के जब्ती  का आदेश  पारित हो  चुका है  इसलिए पिटीशनर  को यह  राशि नकद  में जमा  करानी होगी  तथा इस  संबंध में  बैंक गारंटी  नहीं दी  जा सकती  है। 
       न्यायालय ने माना  कि चूंकि  धारा 130 के  तहत आदेश  पारित हो  चुका है  इसलिए वाहन  का मालिकाना  हक सरकार  का हस्तान्तरित  हो चुका  है तथा  जब तक  अपील जो  कि वह  धारा 130 के  आदेश के  विरूद्ध पेश  करेगा की  कार्यवाही चलती है तब तक  के लिए  यदि वाहन  का मालिक  वाहन को  छुडाना चाहता  है   तो उसे यह राशि नकद  में ही  जमा करानी  होगी तथा  बैंक गारंटी  पेश करने  की आज्ञा  नहीं दी  जा सकती  है। 
       न्यायालय ने 4,21,200/- रु  नकद जमा  कराने की  शर्त पर  व्हीकल छोडऩे  के आदेश  दिये। न्यायालय  ने यह  भी स्पष्ट  किया कि  पिटीशनर जो  यह राशि  जमा करायेगा  उसका प्रभाव  उसकी अपील  की कार्यवाही  पर नहीं  पड़ेगा - जे.  शिवाप्रिया बनाम स्टेट टैक्स ऑफिसर  (2020) 29 टैक्सलोक.कोम 003 (केरला) 
      परिवहन प्रारम्भ होने  के पश्चात  इनवाइस जारी  करने पर  रास्ते में  माल रोकना  जायज 
      रास्ते में परिवहनित  माल को  रोकने से  व्यथित होकर  पिटीशनर ने  यह पिटीशन  प्रस्तुत की  है। रास्ते  में माल  को रोकने  का जो  कारण बताया  गया है  उसमें कहा  गया है  कि जांच  के दौरान  ई-वे  बिल प्रस्तुत  किया गया  जबकि इनवाइस  की कापी  प्रस्तुत नहीं  की गई।  लेकिन इनवाइस  की प्रति  बाद में  प्रस्तुत कर  दी गई  जो कि  साफ्ट कापी  में पेश  की गई।  साफ्ट कापी  से यह  पता चलता  है कि  वह माल  के परिवहन  प्रारम्भ होने  के पश्चात  जनरेट किया  गया है। 
       न्यायालय ने कहा  कि तथ्यों  के अनुसार  माल रोकने  को अनुचित  नहीं माना  जा सकता  है। पिटीशनर  ने बैंक  गारंटी के  आधार पर  माल छोडऩे  की प्रार्थना  की। न्यायालय  ने बैंक  गारंटी के  आधार पर  माल एवं  व्हीकल छोडऩे  के आदेश  दिये तथा  इसके पश्चात  MOV-06 के आधार  पर धारा  129(3) में आदेश पारित करने के  आदेश दिये  - वीनस एन्टरप्राइजेज  बनाम एसिसटेंट  स्टेट टैक्स  ऑफिसर (2020) 28 टैक्सलोक.कोम 085 (केरला) 
      बोरिंग के कार्य  के लिए  परिवहनित मशीन  का ई-वे बिल  ना होने  पर कर  एवं पेनल्टी  की गणना  प्रोपर ऑफिसर  को करने  के निर्देश 
       पिटीशनर की बोरिंग  मशीन जॉब  वर्क के  कार्य हेतु  परिवहनित की  जा रही  थी जिसकी  यमुना एक्सप्रेस  वे पर  जाँच के  दौरान पाया  गया कि  ई-वे  बिल वर्ष  2018 में खरीद  की गई  बोरिंग मशीन  का संलग्न  कियाहुआ  है जिसमें  मशीन की  वैल्यू 41,30,000/-बताई गई  थी। परिवहनित  मशीन के  साथ कोई  इनवाइस या  चालान की  हार्ड कापी  नहीं थी।  इसे रूल  138 का उल्लंघन  मानते हुये  व्हीकल को  रोका गया  तथा धारा  129(3) में नोटिस जारी किया गया। 
       नोटिस के जवाब  में पिटीशनर  ने बताया  कि जो  ई-वे  बिल ड्राइवर  के पास  उपलब्ध था  वह 2018 में  इसकी खरीद  के समय  का था  तथा दूसरा  ई-वे  बिल जो  शारदा इक्यूपमेंट,  झारखंड का  था जिसमें  इक्यूपमेंट को जाँब वर्क हेतु  भेजने की  बात थी  वह भी  पेश किया  गया। नोटिस  के जवाब  में पिटीशनर  ने बताया  कि मशीन  को जाँब  वर्क के  कार्य के  लिए भेजा  जा रहा  था। 
       प्रोपर ऑफिसर ने  ई-वे  बिल के  अनुसार माल  की कीमत  41,30,000/-रूपये मानते हुए  6,30,000 /- रूपये के टैक्स  एंव इतनी  ही पेनल्टी  का आदेश  पारित कर  दिया। प्रथम  अपील अथॉरिटी  ने भी  इसे सही  माना। चूँकि  उत्तर प्रदेश  में अभी  ट्राइब्यूनल का गठन नहीं किया  गया है  इसलिए मामला  उच्च न्यायालय  के समक्ष  रिट के  माध्यम से  पेश किया  गया। 
       पिटीशनर का कहना  है कि  अभी कोई  जाँब वर्क  नहीं हुआ  है इसलिए  कोई टैक्स  देय ही  नहीं है।  सरकारी वकील  का कहना  है कि  जो कागजात  उपलब्ध है  उनके आधार  पर सही  टैक्स एंड  पेनल्टी लगाये  गये हैं। 
       न्यायालय ने कहा  कि पिटीशनर  का कहना  है कि  मशीन सर्विस  प्रदान करने  के लिए  परिवहनित की  जा रही  थी तथा  सर्विस का  वैल्यूशन धारा  7, 9 एवं 13 के तहत किया जाना  था। न्यायालय  ने प्रोपर  ऑफिसर को  मामले की  जाँच कर  पुन: आदेश  पारित करने  का आदेश  दिया - जयट्रोन  कम्यूनिकेशन प्रा. लि. बनाम स्टेट  ऑफ उत्तरप्रदेश  (2020) 28 टैक्सलोक.कोम 073 (इलाहाबाद) 
      ब्रांच ऑफिस या  वेयर हाऊस  को माल  भेजने पर  धारा 129(3) के तहत टैक्स एवं  पेनल्टी लगाना  गलत 
       पिटीशनर ने अपने  तमिलनाडू स्थित  कॉरपोरेट ऑफिस  से तेलगांना  स्थित अपनी  डिपो को  चार ट्रक्टर  का एक  कन्साइनमेंट भेजा जिसमें कन्साइनर एवं  कन्साइनी दोनों  में उसी  का नाम  था। रास्ते  में जांच  के दौरान  डाक्यूमेंट्स एवं माल में मिसमैच  पाया गया  तथा ई-वे बिल  में भी  मिसमैच पाया  गया। पिटीशनर  को कारण  बताओ नोटिस  जारी किया  गया। उस  पर टैक्स  एवं पेनल्टी  की राशि  मिला कर  6,70,448/- आरोपित की गई।  पिटीशनर ने  माल की  जब्ती तथा  अपने अधिकारियों  की गिरफ्तारी  के डर  से राशि  जमा करा  दी तथा  यह पिटीशन  पेश की। 
       न्यायालय में सरकारी  वकील ने  बताया कि  जीएसटी में  एक ही  पार्टी के  मामले में  एक राज्य  से दूसरे  राज्य में  माल भेजने  पर वह  कर योग्य  होता है  लेकिन वह  इस संबंध  में कोई  कानूनी प्रावधान  पेश नहीं  कर पाये।  न्यायालय ने  कहा कि  पिटीशनर के  रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट में यह स्पष्ट  लिखा है  कि उसका  कॉरपोरेट ऑफिस  तमिलनाडू में  है तथा  डिपो तेलगांना  में है।  विभाग का  कहना है  कि उसे  इसकी जानकारी  नहीं थी  तथा पिटीशनर  ने बिना  कारण बताओ  नोटिस का  जवाब पेश  किये राशि  जमा करा  दी इसलिए  विभाग को  ऐसी कोई  जानकारी नहीं  मिल पाई।  चूंकि पिटीशनर  अपने कॉरपोरेट  ऑफिस से  अपनी डिपो  को माल  भेज रहा  था इसलिए  इसमें ऐसा  कुछ साबित  नहीं होता  कि वह  कोई गैरकानूनी  कार्य कर  रहा था।  अब चूंकि  विभाग को  यह बात  पता चल  गई है  कि उसके  एडिशनल व्यापार  स्थल पर  माल भेजा  जा रहा  था इसलिए  टैक्स एवं  पेनल्टी जो  पिटीशनर से  प्राप्त की  गई है  उसे रखने  का कोई  औचित्य नहीं  बनता है। 
       न्यायालय ने जमा  की गई  टैक्स एवं  पेनल्टी की  राशि मय  9 प्रतिशत ब्याज के चार सप्ताह  में लौटाने  का आदेश  पारित किया  - सेम डेल्टजफर  इंडिया प्रा.लि. बनाम  स्टेट ऑफ  तेलगांना (2020) 28 टैक्सलोक.कोम  068 (तेलगांना) 
       यदि इनवाइस वैल्यू  50 हजार रू.  से कम  है तो  ई-वे  बिल की  आवश्यकता नहीं  चाहे वास्तविक  वैल्यू अधिक  ही क्यों  ना हो 
       पिटीशनर को दिल्ली  के व्यापारी  ने घडिय़ों  का एक  कन्साइनमेंट भेजा जिसमें 4,49,550/- रू. की  घडिय़ों को  डिस्काउन्ट के पश्चात् 8.99 रू. प्रति  घड़ी दिखाते  हुए इनवाइस  बनाया गया  तथा 18 प्रतिशत  आईजीएसटी आरोपित  किया गया।  विभाग ने  रास्ते में  जाँच के  दौरान ई-वे बिल  ना होने  के आधार  पर माल  को रोक  कर MOV-07 में नोटिस जारी  किया कि  क्यों ना  धारा 129 (3) के तहत टैक्स एवं  पेनल्टी आरोपित  की जाये।  पिटीशन में  कहा गया  कि चूंकि  माल की  इनवाइस वैल्यू  50 हजार रू.  से कम  है इसलिए  ई-वे  बिल की  आवश्यकता नहीं  है। 
  न्यायालय ने अपने  निर्णय में  कहा कि  चूंकि माल  की इनवाइस  वैल्यू 50 हजार रू. से कम  है इसलिए  ई-वे  बिल की  आवश्यकता नही  है। न्यायालय  ने माल  छोडऩे के  आदेश जारी  किये - बेस्ट  सेलर्स (कोचीन)  प्रा.लि.  बनाम एसिसटेन्ट  स्टेट टैक्स  ऑफिसर   (2020) 28 टैक्सलोक.कोम 049 (केरला) 
      ई-वे बिल  में कन्साइनी  को अपंजीकृत  बताने के  आधार पर  माल को  रास्ते में  नहीं रोका  जा सकता 
      मामले के तथ्यों  के अनुसार  पीटिशनर द्वारा  लूब्रीकेटिंग ऑयल स्टॉक ट्रांस्फर द्वारा  भेजा जा  रहा था  जिसमें ई-वे बिल  में कन्साइनी  को अपंजीकृत  व्यवहारी दिखाया  गया तथा  चालान में  सीजीएसटी एवं  एसजीएसटी लगाया  गया है  जबकि इसे  स्टॉक ट्रांस्फर  बताया जा  रहा है  इसलिए लेनदेन  की सत्यता  का पता  नहीं चल  रहा। इस  आधार पर  विभाग द्वारा  माल एवं  व्हीकल को  धारा 129 के  तहत जब्त  कर लिया  गया। 
       व्यवहारी का कहना  है कि  माल स्टॉक  ट्रांसफर द्वारा  भेजा जा  रहा था  जिसमें गलती  से   चालान में सीजीएसटी एवं एसजीएसटी  लगा दिया  गया। चालान  में कन्साइनी  का जीएसटी  नंबर लिखा  हुआ था  इसलिए केवल  ई-वे  बिल में  कन्साइनी का  जीएसटी नंबर  न होने  का कोई  महत्व नहीं  है। 
       न्यायालय ने उक्त  आधार पर  माना की  यह धारा  129 में माल  रोकने का  उचित आधार  नहीं माना  जा सकता  है। न्यायालय  ने विभाग  को माल  एवं व्हीकल  छोडऩे का  आदेश जारी  किया - एबको  ट्रेडर्स प्रा.लि. बनाम  एसिसटेंट सेल्स  टैक्स ऑफिसर  एवं अन्य  (2020) 27 टैक्सलोक.कोम 054 (केरला) 
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