विभाग द्वारा बैंक खाते का अटैचमेंट - विशेष जानकारी
जीएसटी कानून में विभाग को डिमांड की वसूली के लिए प्रोपर्टी अटैच करने का अधिकार दिया गया है। रेवेन्यू के हितों को ध्यान में रखते हुए सैन्ट्रल गुड़्स एवं सर्विसेज टैक्स एक्ट, 2017 की धारा 83 में डिफाल्टर की सम्पत्ति अटैच करने का प्रावधान किया गया है। यदि किसी व्यवहारी के विरूद्ध कोई डिमांड नहीं है लेकिन उसके विरूद्ध जीएसटी कानून में कोई कार्यवाही चल रही है तब भी विभाग को सम्पत्ति अटैच करने का अधिकार है। लेकिन निम्न धाराओं के तहत चल रही कार्यवाही के आधार पर ही सम्पत्ति अटैच की जा सकती है-
(i) |
धारा 62 - जो कि रिटर्न न भरने वाले व्यवहारियों के निर्धारण से संबंधित है। |
(ii) |
धारा 63 - जो कि अपंजीकृत व्यवहारियों के निर्धारण से संबंधित है। |
(iii) |
धारा 64 - जो कि समरी निर्धारण से संबंधित है। |
(iv) |
धारा 67 - जो कि इन्सपेक्शन, सर्च एवं सीजर से संबंधित है। |
(v) |
धारा 73 - कम टैक्स जमा कराने या टैक्स जमा न कराने या गलत इनपुट टैक्स क्रेडिट क्लेम करने पर जो कि किसी फ्राड या जानबूझ कर गलत स्टेटमेंट पेश करने या जानकारी को छुपाने के कारण न हो। |
(vi) |
धारा 74 - कम टैक्स जमा कराने या टैक्स जमा न कराने या गलत इनपुट टैक्स क्रेडिट फ्राड या जानबूझ कर गलत जानकारी प्रस्तुत करके या जानकारी को छुपा कर क्लेम किया गया हो। |
यदि उपरोक्त धाराओं में किसी व्यवहारी के विरूद्ध कोई कार्यवाही चल रही है तथा कमिश्नर को लगता है कि रेवेन्यू के हितों की रक्षा करने के लिए ताकि व्यवहारी अपनी सम्पत्ति को खुर्दबुर्द न कर सके उसकी सम्पत्ति को अटैच करने के आदेश पारित कर सकता है। इस में बैंक खातों को अटैच करना सबसे मुख्य होता है। यह अटैचमेंट प्रोविजनली किया जाता है।
➤अटैचमेंट केवल 1 वर्ष के लिए
धारा 83(2) में यह प्रावधान किया गया है कि धारा 83(1) में जो अटैचमेंट किया जाता है वह केवल 1 वर्ष के लिए ही प्रभावी होता है। यदि 1 वर्ष तक कोई कार्यवाही व्यवहारी के विरूद्ध नहीं की जाती है तो यह अटैचमेंट स्वत: ही समाप्त हो जाता है।
➤अटैचमेंट का तरीका
धारा 83 में सम्पत्ति का अटैचमेंट जिसमें बैंक एकाउन्ट का अटैचमेंट भी शामिल है वह निम्न प्रकार किया जाता है:-
(i) |
सम्पत्ति के अटैचमेंट के लिए कमिश्नर फार्म GST DRC-22 में एक आदेश पारित करेगा जिसमें अटैच की जाने वाली सम्पत्ति जिसमें बैंक एकाउन्ट भी शामिल है की पूरी जानकारी देनी होगी। |
(ii) |
इस आदेश की प्रति कमिश्नर संबंधित रेवेन्यू अथारिटी या ट्रांस्र्पोट अथॉरिटी या बैंक अथॉरिटी आदि को भेजेगा जिसमें उस सम्पत्ति पर वह अधिभार (emcumbrance) लगा देगा ताकि उस सम्पत्ति को ना तो बेचा जा सके या ना ही उसमें कोई लेनदेन किया जा सके। बैंक एकाउन्ट के मामले में समस्त लेनदेन को रोक दिया जाता है। |
(iii) |
इसमें चल एवं अचल दोनों प्रकार की सम्पत्तियों को अटैच किया जा सकता है। यदि अटैच की गई सम्पत्ति शीध्र खराब होने वाली प्रकृति की है तो कमिश्नर उसके बराबर राशि जमा कराने की शर्त पर उसे फार्म GST DRC-23 में आदेश जारी कर छोड सकता है। |
(iv) |
यदि शीघ्र खराब होने वाली सम्पत्ति को व्यवहारी राशि जमा करा कर छुडवाना नहीं चाहता है तो कमिश्नर स्वयं निर्णय लेकर उस प्रोपर्टी को बेच सकता है तथा वसूल की गई राशि को डिमांड में एडजस्ट कर सकता है। |
➤अटैचमेंट के विरूद्ध दर्ज करा सकते है आपत्ति
सैन्ट्रल गुड्स एवं सर्विसेज टैक्स रूल्स, 2017 के रूल 159(5) में यह प्रावधान किया गया है कि यदि किसी व्यवहारी की किसी सम्पत्ति जिसमें बैंक एकाउन्ट भी शामिल है को विभाग द्वारा अटैच किया जाता है तो व्यवहारी इसके विरूद्ध आपत्ति दर्ज करवा सकता है। यह आपत्ति अटैचमेंट से 7 दिन के भीतर करवानी होगी। यदि व्यवहारी इस संबंध में आपत्ति दर्ज करवाता है तो कमिश्नर को उसे सुनवाई का समुचित अवसर देना होगा तथा यदि कमिश्नर अटैचमेंट समाप्त करना चाहता है तो वह फार्म GST DRC-23 में आदेश पारित कर अटैच की गई सम्पत्ति को छोड सकता है।
यदि कमिश्नर को अटैचमेंट के पश्चात लगता है कि अब अटैचमेंट की आवश्यकता नहीं है तो वह स्वयं भी फार्म GST DRC-23 में आदेश पारित कर सम्पत्ति को छोड सकता है।
➤अटैचमेंट व्यापार को प्रभावित कर सकता है
यदि बैंक एकाउन्ट का अटैचमेंट किया जाता है तो धारा 83 का उपयोग कमिश्नर को बहुत सोच समझ कर करना चाहिए। विभिन्न मामलों में चल रही कार्यवाही में व्यवहारी के पिछले रिकार्ड को देखते हुए ही यह कार्यवाही की जानी चाहिए। विभिन्न न्यायालयों ने इस संबंध में कई महत्वपूर्ण निर्णय पारित किये है जिनकी जानकारी हम आपको दे रहे है।
धारा 71 के आधार पर धारा 83 में बैंक एकाउन्ट अटैच करना गलत
पिटिशनर ने धारा 83 के अन्र्तगत उसके अटैच किए गए बैंक खातों से सम्बन्धित विभागीय आदेश को चुनौती देते हुए बताया कि उसके विरूद्ध विभाग ने धारा 71 के अन्तर्गत कार्यवाही की थी। इसी आधार पर धारा 83 के तहत उसके बैंक खातों को अटैच किया गया। जबकि इन परिस्थतियों में उसके विरूद्ध धारा 83 के तहत कोई कार्यवाही नहीं हो सकती है।
सरकारी पक्ष ने बताया कि पिटिशनर को एक जोखिम निर्यातक घोषित किया हुआ है। उसको कई पत्र लिखे लेकिन सभी वापस आ गए।
माननीय न्यायालय ने पाया कि पिटिशनर के विरूद्ध धारा 83 में दिए गए प्रावधानों के अनुसार पूर्व में कोई कार्यवाही नहीं हई है। माननीय न्यायालय ने विभाग के आदेश को निरस्त करने के आदेश दिए - प्रैक्स फैशन प्रा. लि. बनाम गवर्मेंट ऑफ इंडिया एवं अन्य (2021) 32 टैक्सलोक.कोम 016 (दिल्ली)
पिटिशनर के धारा 83 के तहत अटैच किये गए बैंक खातों को वापस खोलने के आदेश
विभाग ने पिटिशनर के धारा 83 के तहत अचल सम्पत्ति एवं बैंक खातों को अटैच किया। इस बाबत कोर्ट ने सरकारी पक्ष से पूछा कि जब अचल सम्पत्ति अटैच हो तो बैंक खातों को अटैच करने का क्या औचित्य है।
विभाग ने कहा कि पिटिशनर ने अपनी याचिका में अचल सम्पत्ति के अटैचमेंट को भी चुनौती दी हुई है। अगर वो यहाँ सफल होता है तो विभाग के पास रिकवरी करने के लिए कुछ भी शेष नहीं रहेगा।
माननीय न्यायालय ने अंतरिम ऑर्डर देते हुए पिटिशनर के कैश अकाउंट एवं करंट अकाउंट को खोलने के आदेश देते हुए अगली सुनवाई जनवरी 2021 के तीसरे सप्ताह में करने के आदेश दिए - सुपरफाइन इम्पेक्स प्रा.लि. बनाम यूनियन ऑफ इंडिया [2020] 31 टैक्सलोक.कोम 112 (गुजरात)
बैंक अटैचमेंट आदेश के विरूद्ध आपत्ति प्रस्तुत न करने के आधार पर पिटीशन खारिज
पिटिशनर के चालू एवं बचत खाते को धारा 83 के तहत अटैच कर लिया गया। पिटिशनर का कहना है कि उसे केवल धारा 70 के तहत कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है इसलिए धारा 83 के तहत उसके बैंक खातों को अटैच नहीं किया जा सकता है।
न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि पिटिशनर को रूल 159(5) के तहत एकाउन्ट अटैच करने पर आपत्ति दर्ज करवाने का अधिकार था लेकिन उसने ऐसी कोई आपत्ति दर्ज नहीं करवाई है। इस आधार पर न्यायालय ने पिटीशन को खारिज कर दिया - आर.जे. एक्सिस एवं अन्य बनाम प्रिंसिपल कमिश्नर, सैन्ट्रल गुड्स एवं सर्विस टैक्स (2020) 30 टैक्सलोक.कोम 089 (इलाहाबाद)
बैंक एकाउन्ट अटैच करने के विरूद्ध पेश आवेदन पर विचार कर आदेश पारित करने के आदेश
पिटिशनर का बैंक एकाउन्ट 09.11.2020 के आदेश द्वारा अटैच कर लिया गया। पिटीशनर ने 11.11.2020 को रूल 159(5) के तहत आपत्ति दर्ज करवाई जिस पर कोई सुनवाई नहीं की गई। न्यायालय ने आदेश दिया कि पिटीशनर के आवेदन पर प्रोपर ऑफिसर 04.12.2020 तक सुनवाई कर आदेश पारित करे। यदि रूल 159(5) के तहत पारित आदेश से पिटीशनर असंतुष्ट रहता है तो वह उपयुक्त फोरम पर अपील प्रस्तुत कर सकता है - स्काईलार्क इन्फ्रा इन्जिनियरिंग प्रा.लि. बनाम एडिशनल डायरेक्टर जनरल (2020) 30 टैक्सलोक.कोम 060 (पंजाब एवं हरियाणा)
फर्जी बैंक लेनदेन के शक पर बैंक एकाउन्ट अटैच नहीं किया जा सकता
पिटीशनर डायमंड का सप्लायर है। उसने न्यायालय को बताया कि उसने वर्ष 2017-18 एवं 2018-19 में नेबल ट्रेडिंग नामक फर्म को माल सप्लाई किया है जिसे जीएसटी रिटर्न में दिखाया गया है तथा पूरे टैक्स का भुगतान किया गया है। उसके विरूद्ध कोई जांच बकाया नहीं है तथा ना ही उसे कोई सम्मन या नोटिस आदि जारी किया गया है। इसके बावजूद उसके बैंक एकाउन्ट को अटैच कर दिया गया है जिसमें यह झूठा आरोप लगाया गया है कि नेबल ट्रेडिंग ने उसके खाते में कोई राशि ट्रांस्फर की है। उसने बैंक एकाउन्ट के अटैचमेंट को हटाने की मांग की।
विभाग ने न्यायालय को बताया कि किसी वर्मा एन्टरप्राइजेज नाम की फर्म की जांच चल रही है जिसमें अवैध लेनदेन की राशि नेबल ट्रेडिंग के मार्फत पिटीशनर के खाते में ट्रांस्फर हुई है।
न्यायालय ने कहा कि पिटीशनर के विरूद्ध कार्यवाही का कोई आधार नहीं है। केवल किसी अवैध लेनदेन की राशि पिटीशनर के एकाउन्ट में हस्तांतरित होने के शक में पिटीशनर के बैंक एकाउन्ट को अटैच नहीं किया जा सकता है। चूंकि पिटीशनर के विरूद्ध कोई पुख्ता सबूत नहीं है इसलिए न्यायालयने अटैचमेंट समाप्त करने का आदेश दिया - ग्लोनिया इम्पेक्टस बनाम एसिसटेंट कमिश्नर एवं अन्य (2020) 30 टैक्सलोक.कोम 006 (केरला)
धारा 83 में अटैचमेंट के लिए आवश्यक शर्ते तय
पिटीशनर के पांच बैंक एकाउन्ट अटैच कर लिए गये। अटैचमेंट आदेश में कहा गया कि करदाता के विरुद्ध धारा 74 में कार्यवाही प्रारम्भ की गई है इसलिए उसके बैंक एकाउन्ट में कोई लेनदेन न किया जाये। न्यायालय ने गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा बेलेरीयस इन्डस्ट्रीज बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (2020) 15 टैक्सलोक.कोम 085 (गुजरात) में दिये निर्णय के आधार पर अटैचमेंट की निम्न आवश्यक शर्तों की पूर्ति न होने के आधार पर अटैचमेंट को खारिज कर दिया तथा बैंक एकाउन्ट चालू करने के आदेश पारित किये। न्यायालय ने निम्न बातों को महत्त्वपूर्ण माना—
(1) |
यदि निर्धारण आदेश पारित होने से पहले अटैचमेंट आदेश जारी किया जा रहा है तो यह देखना जरूरी है कि अटैचमेंट रेवेन्यू के हित में आवश्यक है या नहीं। इसके लिए पुख्ता सामग्री विभाग के पास उपलब्ध होनी चाहिए। |
(2) |
अटैचमेंट का अधिकार काफी प्रबल एवं बड़ा अधिकार है जिसका उपयोग काफी सोच समझकर विशेष परिस्थितियों में ही करना चाहिए। |
(3) |
अटैचमेंट के अधिकार का प्रयोग तभी करना चाहिए जब इस बात की आशंका हो कि करदाता कर दायित्व का भुगतान नहीं करेगा। इसलिए इसका उपयोग काफी सोच समझकर करना चाहिए। |
(4) |
अटैचमेंट के अधिकार का उपयोग तभी होना चाहिए जब इस बात की आशंका हो कि करदाता अपनी प्रोपर्टी को खुर्द-बुर्द कर सकता है ताकि वह कर की वसूली की कार्यवाही को व्यर्थ बना सके। |
(5) |
अटैचमेंट रूपी हथियार का उपयोग करदाता को परेशान करने के उद्देश्य से नहीं होना चाहिए तथा ना ही इसका उपयोग इस तरह किया जाये कि करदाता का व्यापार ही बर्बाद हो जाये। |
(6) |
बैंक अकाउन्ट या व्यापार की सम्पत्तियों का अटैचमेंट तभी किया जाना चाहिए जब कोई ओर चारा नजर न आये। धारा 83 के तहत अटैचमेंट की तुलना रिकवरी प्रोसिडिंग के तहत होने वाले अटैचमेंट से नहीं करनी चाहिए। |
(7) |
अधिकारी को धारा 83 के अटैचमेंट से पूर्व निम्न दो बातों पर विचार करना चाहिए-
(i) क्या यह रेवेन्यू तटस्थ की स्थिति है।
(ii) क्या इनपुट टैक्स क्रेडिट को रिवर्स करके रेवेन्यू का हित सुरक्षित हो सकता है तो अटैचमेंट से बचना चाहिए।
— जय अम्बे फिलामेन्ट प्रा. लि. बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (2020) 29 टैक्सलोक.कोम 062 (गुजरात) |
प्रोविजनल अटैचमेंट पर आपत्ति रूल 159(5) में दर्ज करवाई जा सकती है
पिटीशनर ने पिटीशन में धारा 83 में किये गये अटैचमेंट को चेलेंज किया है। उनका कहना है जब धारा 62, 63, 64, 67, 73 एवं 74 में कोई कार्यवाही नहीं चल रही है तो धारा 83 में प्रोपर्टी का प्रोविजनल अटैचमेंट नहीं किया जा सकता है।
न्यायालय ने कहा कि इस मामले में रूल 159 (5) लागू होता है जिसमें प्रोविजनल अटैचमेंट के मामले में 7 दिनों के भीतर आपत्ति दर्ज कराई जा सकती है। न्यायालय ने गुजरात उच्च न्यायालय के निर्णय प्रनीत हेम देसाई तथा दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्णय वाटरमेलन मैनेजमेंट सर्विसेज का हवाला दिया। न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि विभाग इस पिटीशन को रूल 159(5) के तहत आपत्ति मानते हुए एक सप्ताह में इस मामले का निपटारा पिटीशनर को सुनवाई का अवसर प्रदान करते हुए करे - न्यूट्रोन स्टील ट्रेडिंग प्रा. लि. बनाम कमिश्नर, सीजीएसटी (2020) 28 टीयूडी ओनलाईन 044 (दिल्ली)
धारा 62, 63, 64, 67, 73 या 74 में कार्यवाही चालू होने पर ही प्रोविजनल अटैचमेंट की कार्यवाही जायज
पिटीशनर के विरुद्ध प्रोविजनल अटैचमेंट की कार्रवाई धारा 67 में कार्यवाही किये जाने पर की गई थी। अब जबकि धारा 67 की कार्रवाई समाप्त हो चुकी है तथा धारा 63 या धारा 74 में कोई कार्यवाही प्रारम्भ नहीं की गई है इसलिए अटैचमेंट आदेश स्वत: ही निष्प्रभावी हो गया है। विभाग का कहना है कि जब तक धारा 63 या धारा 74 की कार्रवाई अंजाम तक नहीं पहुंचती है अटैचमेंट निष्प्रभावी नहीं हो सकता है।
न्यायालय ने माना की धारा 67 में जब कार्यवाही प्रारंभ की गई थी तब बैंक अकाउंट अटैच करने की कार्यवाही की गई थी। अब जब धारा 67 की कार्यवाही पूरी हो गई है तथा धारा 63 या धारा 74 में कोई कार्यवाही प्रारंभ नहीं की गई है तो प्रोविजनल अटैचमेंट का कोई औचित्य नहीं है। जब धारा 63 या धारा 64 या धारा 67 या धारा 73 या धारा 74 में कोई कार्यवाही बाकी नहीं है तो धारा 83 में की गई प्रोविजनल अटैचमेंट की कार्यवाही निष्प्रभावी मानी जाएगी। न्यायालय ने अटैचमेंट के आदेश को समाप्त कर दिया - यूएफवी इंडिया ग्लोबल एज्यूकेशन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया एवं अन्य (2020) 28 टैक्सलोक.कोम 019 (पंजाब एवं हरियाणा)
प्रोपर्टी का अटैचमेंट एक वर्ष पश्चात स्वत: ही समाप्त
पिटीशनर के बैंक एकाउन्ट को विभाग द्वारा इसलिए अटैच कर लिया गया था कि उसके विरूद्ध कुछ राशि बकाया चल रही है। यह अटैचमेंट 06.08.2019 को की गई थी। न्यायालय ने सुनवाई के दौरान कहा कि धारा 83(2) के अनुसार 1 वर्ष पश्चात अटैचमेंट स्वत: ही समाप्त हो जाता है।
न्यायालय ने इस संबंध में नाराजगी जताई कि विभाग ने शीघ्र वसूली के उद्देश्य से एकाउन्ट अटैच किया था लेकिन वे न्यायालय को भी पूरी जानकारी नहीं दे पा रहे है। न्यायालय ने विभाग से पिटीशनर के आवेदन पर धारा 83(2) के तहत कार्यवाही करने के निर्देश दिये - जैकपोट एक्सिम प्रा.लि. बनाम यूनियन ऑफ इंडिया एंव अन्य (2020) 28 टैक्सलोक.कोम 003 (इलाहाबाद)
बिना धारा 74 में कार्रवाई के बैंक अकाउंट अटैच करना गलत
पिटीशनर का कहना है कि उसके विरुद्ध धारा 74 में कोई कार्रवाई नहीं चल रही है तब भी उसका बैंक अकाउंट अटैच कर लिया गया है। उसने अपना बैंक अकाउंट चालू करने के लिए रिट पेश की। उसने पतरन स्टील रोलिंग मिल्स के गुजरात उच्च न्यायालय के निर्णय के परिपेक्ष्य में बताया कि कमिश्नर बिना लिखित में कारण दर्ज किए कि पिटीशनर निर्धारण के पश्चात टैक्स का भुगतान नहीं करेगा उसके बैंक अकाउंट को अटैच कर सकता है। अकाउंट अटैच करने से पिटीशनर का व्यापार बंद हो जायेगा। न्यायालय ने विभाग को नोटिस जारी कर मामले की सुनवाई 21 सितम्बर 2020 के लिए निर्धारित की - ग्लोबल एन्टरप्राइजेज बनाम कमिश्नर ऑफ सैन्ट्रल जीएसटी (2020) 27 टैक्सलोक.कोम 049 (दिल्ली)
प्रोपर्टी का प्रोविजनल अटैचमेंट आर्डर के एक वर्ष तक मान्य
पीटिशनर के बैंक को विभाग द्वारा पीटिशनर के एकाउन्ट को अटैच करने का आदेश धारा 83 के तहत जारी किया गया जिस पर बैंक ने पीटिशनर को 02.08.2019 को पत्र द्वारा सूचित किया। पीटिशनर का कहना है कि उनके खाते को अटैच हुए 1 वर्ष हो चुका है इसलिए धारा 83(2) के तहत अब अटैचमेंट को समाप्त माना जाना चाहिए।
न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि आदेश के एक वर्ष पश्चात अटैचमेंट समाप्त हो जाता है तथा चूंकि बैंक ने 02.08.2019 को पीटिशनर को इस संबंध में सूचित कर दिया था इसलिए स्पष्ट है कि इस आदेश को 1 वर्ष से अधिक हो चुका है इसलिए अटैचमेंट को समाप्त माना जाये तथा बैंक को आदेश दिया कि वह पीटिशनर को बैंक अकाउन्ट आपरेट करने की इजाजत दे — नमस्कार इन्टरप्राइजेज बनाम कमिश्नर, गुड्स एंड सर्विस टैक्स (2020) 27 टैक्सलोक.कोम 014 (गुजरात)
अटैचमेंट आदेश एक वर्ष पश्चात स्वत: समाप्त माने जाते हैं
पीटिशनर के दो बैंक अकाउन्ट 28.05.2019 को अटैच किये गये थे। पीटिशनर ने उनके अटैचमेंट को एक वर्ष पूरा होने के बाद उन्हें चालू करने का आदेश पारित करने की न्यायालय से प्रार्थना की। धारा 83(2) के प्रावधानों के तहत अटैचमेंट एक वर्ष के पश्चात स्वत: ही समाप्त हो जाता है।
न्यायालय ने अपने निर्णय में विभाग को आदेश दिया कि पीटिशनर के बैंक खातों से अटैचमेंट इस आदेश के प्राप्त होने के दो सप्ताह में हटाया जाये — ए.पी. स्टील बनाम एडिशनल डायरेक्टर जनरल, डीजीसीआई, बैंगलूर (2020) 26 टैक्सलोक.कोम 074 (कर्नाटका)
सिक्योरिटी राशि रोक कर बैंक अकाउंट खोलने के निर्देश
पीटिशनर का बैंक अकाउंट सीजीएसटी ईस्ट दिल्ली द्वारा अटैच कर लिया गया जबकि उसका कार्यक्षेत्र सीजीएसटी, नोएडा, उत्तर प्रदेश के पास आता है। पीटिशनर पर आरोप है कि उसने लगभग 60 लाख रु. की बोगस इनपुट टैक्स क्रेडिट क्लेम की है। पीटिशनर इसके बदले बैंक गारंटी देने को तैयार है। सरकारी वकील ने बताया कि उसे बैंक गारंटी स्वीकार करने के लिए विभाग से मना किया गया है अत: नगद राशि वसूल होने के बाद ही अटैचमेंट खोला जा सकता है।
पीटिशनर ने कहा कि उसके बैंक खाते में लगभग 1 करोड़ रु. जमा है लेकिन यदि डिमांड की पूरी वसूली की गई तो वह कोविड-19 के दौरान अपना व्यापार नहीं कर पाएगा।
न्यायालय ने 45 लाख रु. नगद में सिक्योरिटी देने तथा 15 लाख रु. की बैंक गारंटी देने की शर्त पर विभाग को अटैचमेंट आदेश वापिस लेने का आदेश दिया - यूफिलिक्स इन्डस्ट्रीज बनाम यूनियन ऑफ इंडिया एवं अन्य (2020) 26 टैक्सलोक.कोम 055 (दिल्ली)
डीआरसी-01ए में पारित आदेश रद्द
पीटिशनर को विभाग द्वारा 30.06.2020 को धारा 70(1) में सम्मन जारी कर 02.07.2020 को उपस्थित होकर अपना बयान दर्ज कराने का निर्देश दिया जिसमें उसकी फर्म द्वारा की गई खरीद-बिक्री के लेनदेनों की जानकारी प्राप्त करनी थी। व्यवहारी ने स्वास्थ्य कारणों के चलते 2.7.2020 को उपस्थित होने में असमर्थता जताई। इसके पश्चात 23.7.2020 को विभाग ने रूल 142(1) के तहत डीआरसी-1ए नोटिस जारी कर 69,25,862/- रु. के कर दायित्व की गणना कर उसे मय ब्याज एवं पेनल्टी जमा कराने के लिए कहा। इसके साथ ही पीटिशनर के रिहायसी मकान को भी प्रोविजनली अटैच करने के लिए फार्म जीएसटी डीआरसी-22 में आदेश पारित किया।
उपरोक्त कार्यवाही से असंतुष्ट होकर पीटिशनर ने यह पीटिशन पेश की है।
न्यायालय ने कहा कि यह स्पष्ट है कि जैसे ही पीटिशनर धारा 70 के तहत जारी सम्मन का जवाब देने में असफल हुआ विभाग ने डीआरसी-1ए जारी कर उस पर 1,07,05,725/- रु. का दायित्व निकाल दिया। यह सही है कि पीटिशनर को यह साबित करने का मौका नहीं दिया गया कि उसके लेनदेन कानूनी तौर पर सही है। पीटिशनर ने प्रोपर अधिकारी को यह जानकारी दी थी कि वह मेडिकल सलाह के कारण उपस्थित नहीं हो सकता है। इस दौरान पीटिशनर का आंखों का ऑपरेशन भी हुआ है।
न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि चूंकि इतना बड़ा दायित्व तय किया गया है इसलिए उसे सुनवाई का अवसर दिया जाना आवश्यक है। इसके चलते उसे जारी डीआरसी-1ए नोटिस को खारिज किया जाता है तथा मामला पुन: सुनवाई के लिए प्रोपर अधिकारी को प्रति प्रेषित किया जाता है। रेवेन्यू के हक में न्यायालय ने अटैचमेंट के आदेश को लागू रखा। न्यायालय ने पीटिशनर को प्रोपर ऑफिसर द्वारा जारी नोटिस के आधार पर उसके समक्ष उपस्थित होकर अपना पक्ष रखने के लिए कहा - फोमेटिव टैक्स फैव बनाम स्टेट ऑफ गुजरात एवं अन्य (2020) 27 टैक्सलोक.कोम 037 (गुजरात)
क्या धारा 74 के नोटिस के बिना धारा 83 में अटैचमेंट की कार्यवाही की जा सकती है?
पीटिशनर के बैंक एकाउन्ट का प्रोविजनल अटैचमेंट दिनांक 05.03.2020 के आदेश द्वारा किया गया। पीटिशनर का मानना है कि धारा 74 में नोटिस जारी किये बिना धारा 83 में अटैचमेंट की कार्यवाही नहीं की जा सकती है। न्यायालय का मानना है कि रूल 159(5) के तहत पीटिशनर को यह अधिकार प्रदान किया गया है कि वह अटैचमेंट आदेश जारी होने के 7 दिन के भीतर यह आपत्ति दर्ज करवा सकता है कि अटैचमेंट की कार्यवाही गलत है। न्यायालय ने गुजरात उच्च न्यायालय के निर्णय प्रनीत देसाई बनाम एडिशनल डायरेक्टर जनरल निर्णय दिनांक 12.04.2019 के आदेश के परिपेक्ष्य में माना कि धारा 74 में नोटिस जारी न करने की आपत्ति भी रूल 159(5) में आपत्ति का कारण हो सकता है। अत: पीटिशनर रूल 159(5) के तहत आपत्ति दर्ज कराये - वाटरमेलन मैनेजमेंट सर्विसेज प्रा.लि. बनाम कमिश्नर, सैन्ट्रल टैक्स, जीएसटी, दिल्ली (ईस्ट) (2020) 24 टैक्सलोक.कोम 27 (दिल्ली)
|