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Article Dated 23rd February 2021

टीडीएस की कटौती नहीं करने पर खर्चों की छूट नहीं मिलेगी

आयकर कानून में कुछ भुगतान पर स्रोत पर कर काटना आवश्यक होता है। टीडीएस न काटने पर पेनल्टी एवं जेल की सजा के अतिरिक्त संबंधित खर्चें की छूट न मिलना भी शामिल है। यदि टीडीएस नहीं काटा गया है या काटकर समय पर जमा नहीं कराया गया है तो क्या परिणाम भुगतने होंगे यह जानना आवश्यक है।

टीडीएस की कटौती नहीं करने के परिणाम

टीडीएस की कटौती नहीं करने या कटौती करके सरकार के पास जमा नहीं करने के निम्न परिणाम होंगे:-

धारा 201 के तहत

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टीडीएस जमा नहीं करने वाले को डिफ़ाल्टर माना जाएगा

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उसे कर की कटौती की तिथी से वास्तविक भुगतान की तिथि तक 18 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज चुकाना होगा।

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डिफ़ाल्टर की सभी असेट्स ब्याज के साथ टीडीएस की राशि के अधीन होगी।

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डिफ़ाल्टर को 3 माह से 7 वर्ष तक के कारावास और जुर्माने की सजा हो सकती है।

क्या है प्रावधान

आयकर कानून के कुछ भुगतान के मामले में स्रोत पर कर काटने का प्रावधान किया गया है। इसके लिए टीडीएस के विस्तृत प्रावधान बनाये गये है तथा ब्याज, कमीशन, ब्रोकरेज, किराया, कान्ट्रेक्ट राशि, वेतन, प्रोपर्टी की बिक्री, डिविडेंड, आदि पर स्रोत पर कर काटना होता है। यदि कोई व्यक्ति टीडीएस काटने के लिए दायी होने के बावजूद भी टीडीएस नहीं काटता है या काट कर समय पर उसे जमा नहीं कराता है तो उसके द्वारा किये गये उस खर्च के 30 प्रतिशत के बराबर की राशि को करदाता की आय में जोड दिया जाता है। धारा 40(a)(ia) में रेजीडेन्ट व्यक्ति को बिना टीडीएस काटे किये गये भुगतान पर 30 प्रतिशत के बराबर राशि अमान्य कर दी जाती है।

यदि नान रेजीडेन्ट को भुगतान किया जाता है या भारत के बाहर कोई भुगतान किया जाता है तथा टीडीएस नहीं काटा जाता है तो धारा 40(a)(i) के तहत पूरी राशि अमान्य कर दी जाती है तथा करदाता की आय में उसे जोड़ दिया जाता है। यदि टीडीएस को धारा 139(1) में रिटर्न प्रस्तुत करने की अंतिम तिथी तक जमा करा दिया जाता है तो उसकी छूट उसी वर्ष में प्राप्त हो जाती है।

रेजीडेन्ट के मामले में भी धारा 139(1) के तहत रिटर्न प्रस्तुत करने की तिथी तक टीडीएस की राशि को जमा कराया जा सकता है तब धारा 40(a)(ia) के तहत राशि अमान्य नहीं की जायेगी।

वर्तमान में धारा 40(a)(ia) के तहत ब्याज, कमीशन, ब्रोकरेज, किराया, रॉयल्टी, टैक्नीकल सेवाओं की फीस एवं कान्ट्रेक्ट के संबंध में किये गये भुगतान शामिल होते है। अब इसमें वेतन, डायरेक्टर की फीस को भी शामिल किया गया है। अब यदि वेतन या डायरेक्टर की फीस पर टीडीएस नहीं काटा जाता है या काट कर जमा नहीं कराया जाता है तो उस खर्च पर भी धारा 40(a)(ia) के प्रावधान लागू होंगे।

महत्वपूर्ण जानकारी

धारा 40(ए)(आईए) में बताए गए पेबल का अर्थ क्या वह पूरी राशि है जिस पर टीडीएस की कटौती की जानी है या वह राशि जो 31 मार्च को बकाया थी उससे है।

आईटीएटी विशाखापटनम की स्पेशल बेंच ने मर्लिन शिपिंग एंड ट्रांसपोर्ट, विशाखापटनम बनाम एडिशनल कमिश्नर ऑफ इन्कम टैक्स (2012-टीआईओएल-184-आईटीएटी-विझाग-एसबी) में धारा 40(ए)(आईए) के संबंध में निम्न फैसला किया है:

इस मामले में असेसी जो शिप कंटेनर्स के ट्रांसपोर्ट और हेंडलिंग, कस्टम क्लीयरेंस और फोर्वर्डिंग एजेंट का व्यापार करने वाली पार्टनरशिप फर्म है ने 29.03.2008 को निर्धारण वर्ष 2005-06 के लिए 15,24,710 रुपये की कुल आय की रिटर्न दायर की। निर्धारण अधिकारी ने असेसी द्वारा प्रॉफि़ट एंड लॉस अकाउंट में बताई गई 38.75 लाख रुपये के ब्रोकरेज खर्च और 2,43,253 रुपये की कमीशन की राशि पर धारा 40(ए)(आईए) के तहत टीडीएस की कटौती नहीं करने पर आपत्ति जताई। निर्धारण अधिकारी ने डिफ़ाल्ट की सूचना दी और फ़र्म ने अपनी चूक मानते हुए खर्चों की कटौती नहीं करवाने पर सहमति जता दी। निर्धारण अधिकारी ने ब्रोकरेज और कमीशन की राशि को डिसअलाऊ कर दिया और उसे असेसी की आय में शामिल कर दिया। सीआईटी (अपील्स) के सामने असेसी ने कहा कि निर्धारण के समय उसका यह मानना था कि धारा 40(ए)(आईए) के प्रावधान चुकाई गई और चुकाई जाने वाली दोनों राशि पर लागू होंगे हालांकि बाद में प्रावधानों का मनन करने और विशेषज्ञों से राय करने पर ज्ञात हुआ कि ये प्रावधान केवल देय (पेबल) राशि पर ही लागू होंगे इसी कारण से असेसी के मामले में 31.03.2005 को बकाया ब्रोकरेज और कमीशन के पेटे केवल 1,78,025 रुपये बकाया थे इसलिए इसी राशि का डिसअलाउंस किया जाना चाहिए।

स्पेशल बेंच से इस मामले में यह स्पष्ट करने को कहा गया कि धारा 40(ए)(आईए) में बताए गए पेबल का अर्थ क्या वह पूरी राशि है जिस पर टीडीएस की कटौती की जानी है या वह राशि जो 31 मार्च को बकाया थी।

स्पेशल बेंच ने बहुमत से माना कि धारा 40(ए)(आईए) के प्रावधान केवल उस राशि पर लागू होंगे जो 31 मार्च को बकाया हैं ना कि उस राशि पर जो वर्ष के दौरान चुकाई गई हों और उन पर टीडीएस नहीं कटा हो।

इस फैसले के मुख्य बिन्दु निम्न हैं

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असेसी द्वारा बिना टीडीएस काटे चुकाई गई ब्रोकरेज खर्च और कमीशन के पेटे खर्च की गई 38.75 लाख रुपये और 2,43,253 रुपये की राशि में से केवल 1.78 लाख रुपये की राशि ही पेबल है जिस पर धारा 40(ए)(आईए) के प्रावधान लागू होंगे जबकि निर्धारण अधिकारी ने पूरी राशि पर ये प्रावधान लागू किए थे।

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असेसी का यह मानना था कि धारा 40(ए)(आईए) के तहत डिसअलाउंस केवल पेबल राशि का ही हो सकता है ना कि पेड़ राशि पर होगा।

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ट्राइब्यूनल की स्पेशल ब्रैंच ने बहुमत से निर्णित किया कि धारा 40(ए)(आईए) के प्रावधान केवल उसी राशि पर लागू होंगे जो 31 मार्च को पेबल थी ना कि उस राशि पर लागू होंगे जिन का भुगतान साल भर में किया जा चुका है।

अन्य महत्वपूर्ण निर्णय

विक्टर शिपिंग सर्विसेज प्रा. लि. आईटीए/122/2013 के मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट के सामने ऐसा विषय आया।

असेसी कंपनी जो शिपिंग सर्विस कंपनी है ने शिप मेनेजमेंट के लिए दूसरी कंपनी की सेवाएँ लेकर बिना टीडीएस की कटौती किए 1.17 करोड़ रुपये का भुगतान इस आधार पर किया कि सेवा प्रदाता को किया गया यह भुगतान उसके द्वारा किए गए खर्चों का पुनर्भुगतान है। निर्धारण अधिकारी ने कंपनी के इस तर्क को नहीं माना और धारा 40(ए)(आईए) के तहत पूरे भुगतान को डिस अलाऊ कर दिया।

कंपनी के द्वारा अपील करने पर सीआईटी (अपील्स) ने माना कि यदि वादी द्वारा वर्ष के दौरान ऐसे खर्चों का पूरा भुगतान किया जाता हो और संबन्धित निर्धारण वर्ष के अंत में कोई राशि बकाया नहीं रही हो तब ऐसे मामलों में धारा 40(ए)(आईए) लागू नहीं होगी। ट्राइब्यूनल ने ना केवल असेसी के खर्चों के पुनर्भुगतान पर टैक्स नहीं लगने के दावे को माना बल्कि यह भी माना कि धारा 40(ए)(आईए) वर्ष के अंत में बकाया राशि पर ही लागू होगी ना कि वर्ष के दौरान किए गए भुगतानों पर लागू होगी।

विभाग ने अपील करके इलाहाबाद हाई कोर्ट से जानना चाहा कि क्या आईटीएटी ने सीआईटी (अपील्स) द्वारा असेसी के पक्ष में 1.17 करोड़ रुपये के खर्च को अलाऊ करने के लिए दिये गए आदेश की पुष्टि करके सही किया है जबकि असेसी और मरकेटर लाइंस लि. के बीच एग्रीमेंट समेत मेमोरेंडम ऑफ अंडर स्टेंडिंग मौजूद था।

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 09-07-2013 को आदेश दिया कि रेवेन्यू मरलीन शिपिंग मामले में आईटीएटी की स्पेशल बेंच की इस टिप्पणी का लाभ नहीं ले सकता है कि धारा 40(ए)(आईए) को टीडीएस के माध्यम से राजस्व बढ़ाने के लिए जोड़ा गया है ना कि इन्कम फ्रोम बिजनेस एंड प्रोफेशन के मद के तहत वाजिब खर्चों को डिस अलाऊ करने के लिए जोड़ा गया है। कोर्ट ने इस संबंध में कहा कि किसी खर्च को इस आधार पर डिस अलाऊ करना कि टैक्स की कटौती नहीं हुई है वर्ष के अंत में बकाया भुगतान पर लागू होगा ना कि वर्ष के दौरान किए गए भुगतान पर लागू होगा।

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

पालम गैस सर्विसेज बनाम कमिश्नर ऑफ इनकम टैक्स (2017) 394 आईटीआर 300 (सुप्रीम कोर्ट)  के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पेबल एवं पेड के मामले पर विस्तृत चर्चा की है। न्यायालय ने कहा कि धारा 40(ए)(आईए) में पेबल शब्द को इस्तेमाल किया गया है। इस कारण यह विवाद पैदा हो गया है कि जो राशि पेबल बचती है उसे अमान्य माना जायेगा या वर्ष के दौरान भुगतान की गई राशि पर भी इसकी गणना की जायेगी।  सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस संबंध में विभिन्न उच्च न्यायालयों ने अलग-अलग निर्णय पारित किये है। अधिकतर उच्च न्यायालयों ने माना है कि यह प्रावधान उन मामलों में भी लागू होगा जहां राशि का भुगतान कर दिया गया है। मद्रास, कलकत्ता एवं गुजरात उच्च न्यायालयों ने इस प्रकार का निर्णय दिया है जबकि इलाहाबाद उच्च न्यायालय का मानना है कि यह प्रावधान केवल पेबल राशि पर ही लागू होगा। हाल ही पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने भी तीन उच्च न्यायालयों के निर्णयों का अनुसरण कर आदेश पारित किया है। पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने इलाबाहाद उच्च न्यायालय के निर्णय का अनुसरण नहीं किया है।

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि धारा 194सी एवं धारा 200 एवं रूल 30 का अवलोकन करने से यह स्पष्ट होता है कि टीडीएस की राशि भुगतान या खाते में जमा करने जा दोनो में पहले हो के समय काटनी होती है। धारा 194सी में स्पष्ट लिखा है कि इसे खाते में क्रेडिट करते समय ही काटना होगा। न्यायालय ने माना कि धारा 40(ए)(आईए) केवल पेबल राशि के मामले में ही लागू नहीं होती है बल्कि यह पेड की गई राशि पर भी लागू होती है। हमें धारा 194सी एवं धारा 200 के प्रावधानों को भी ध्यान में रखना होगा। यदि केवल पेबल राशि पर ही टीडीएस डिफाल्ट माना जायेगा तो बहुत सारे करदाता इसका लाभ कर नियमों की पालना न करके भी बिना किसी नुकसान के रहेंगे। ऐसे करदाताओं को कानून की पालना न करने के परिणाम तो भुगतने ही होंगे।

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने केवल पेबल राशि को ही अमान्य करने का आदेश दिया था तथा यह सही है कि इस निर्णय के विरूद्ध दायर स्पेशल लीव पिटीशन को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि हमने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय को स्वीकार कर लिया है। इसलिए पंजाब एवं हरियाणा, मद्रास एवं कलकत्ता उच्च न्यायालयों द्वारा पारित आदेश का हम समर्थन करते है तथा विक्टर शिपिंग के मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय को सही नहीं मानते है तथा उसे खारिज करते है तथा करदाता की अपील को भी खारिज करते है।

इस प्रकार इस निर्णय से यह स्पष्ट हो गया है कि पेबल एवं पेड दोनों राशि पर ही यदि टीडीएस नहीं काटा गया है तो वह धारा 40(ए)(आईए) के तहत अमान्य होगा।

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