रायल्टी पर जीएसटी की स्थिति - नवीनतम जानकारी
माइन्स से खनन द्वारा जो मिनरल्स आदि निकाले जाते है उन माइन्स को राज्य सरकार लीज पर देने का कार्य करती है तथा उन माइन्स से निकलने वाले मिनरल्स पर सरकार रायल्टी की वसूली करती है। यह रायल्टी सर्विस टैक्स के दायरे में आयेगी या नहीं यह विवाद वित्त अधिनियम 1994 द्वारा लागू सर्विस टैक्स के समय से चला आ रहा है। इस संबंध में राजस्थान उच्च न्यायालय का एक निर्णय उदयपुर चेम्बर ऑफ कामर्स एण्ड इन्डस्ट्रीज बनाम भारत सरकार (2017) 01 टैक्सलोक.कोम 090 (राजस्थान) बहुत ही महत्वपूर्ण है। इस निर्णय में राजस्थान उच्च न्यायालय ने रायल्टी को खनन के संबंध में प्रतिफल माना था जो कि लीज होल्डर सरकार को खनन के लिए किराये पर ली गई माइन्स का चुकाता है। इसलिए किसी प्रतिफल के बदले खनन की सेवा प्राप्त करने को सर्विस टैक्स के तहत एक सर्विस माना गया। पिटीशनर का कहना था कि रायल्टी एक वैधानिक भुगतान है तथा इसे सर्विस नहीं माना जा सकता है। इस माइनिंग लीज को प्रदान करने में ना तो राज्य सरकार कोई सेवा प्रदान कर रही है तथा ना ही माइनिंग लीज होल्डर कोई सेवा प्रदान कर रहा है। इसलिए सर्विस टैक्स लगाये जाने का कोई प्रश्न ही पैदा नहीं होता है।
राजस्थान उच्च न्यायालय ने पिटीशनर के तर्को को अस्वीकार कर दिया तथा रायल्टी पर सर्विस टैक्स का दायित्व माना। इस निर्णय के विरूद्ध पिटीशनर ने माननीय सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष अपील पेश की। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश दिनांक 15.01.2020 द्वारा पिटीशनर की स्पेशल लीव पिटीशन को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया तथा आठ सप्ताह में मामला लिस्ट करने का आदेश दिया।
चूंकि यह मामला पूर्व सर्विस टैक्स कानून से संबंधित है इसलिए जब जीएसटी लागू हुआ तो फिर यही समस्या पैदा हुई कि रायल्टी जो मिनरल्स के खनन पर सरकार को चुकाई जा रही है उस पर जीएसटी देय होगा अथवा नहीं? इस संबंध में एक रिट पिटीशन माननीय सुप्रीम कोर्ट के समक्ष पेश की गई। लखविन्दर सिंह बनाम भारत सरकार के मामले में दायर इस रिट पिटीशन में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने 04.10.2021 को एक आदेश द्वारा माइनिंग लीज पर रायल्टी पर जीएसटी के भुगतान पर रोक लगा दी तथा इस मामले को भी उदयपुर चेम्बर ऑफ कामर्स एण्ड इन्डस्ट्रीज की रिट पिटीशन स. 37326/2017 के साथ जोड दिया। इसके पश्चात विभिन्न उच्च न्यायालयों ने रायल्टी पर जीएसटी वसूल करने पर रोक लगा दी। कुछ महत्वपूर्ण निर्णय निम्न प्रकार है-
सरकार द्वारा जारी विभिन्न प्राय: पूछे जाने वाले प्रश्नों में एक प्रश्न में यह बताया गया है कि क्या सरकार को माइनिंग लीज पर चुकाई जाने वाली रायल्टी पर जीएसटी देय होगा? इस प्रश्न के जवाब में कहा गया है कि सरकार को देय माइनिंग लीज की रायल्टी पर रिवर्स चार्ज के तहत जीएसटी चुकाना होगा तथा सप्लाई प्राप्तकर्ता इस चुकाई गई जीएसटी का इनपुट टैक्स क्रेडिट क्लेम कर सकता है। एक अन्य प्रश्न में भी इसे सर्विस माना है तथा इस पर जीएसटी रिवर्स चार्ज में चुकाने की बात कही गई है। प्रश्न इस प्रकार है-
प्रश्र- क्या रॉयल्टी के रूप में या प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग के अधिकार प्रदान करने के लिए सरकार को भुगतान/देय किसी अन्य रूप में राशि कर योग्य है?
उत्तर सरकार तेल, हाइड्रोकार्बन, लौह अयस्क, मैंगनीज आदि जैसे प्राकृतिक संसाधनों की खोज के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों सहित विभिन्न कंपनियों को लाइसेंस प्रदान करती है। प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग के अधिकार सौंपने के लिए, लाइसेंसधारी कंपनियों को सरकार को वार्षिक लाइसेंस शुल्क, पट्टा शुल्क, रॉयल्टी, आदि के रूप में प्रतिफल का भुगतान करना होता है। प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग के अधिकारों के असाइनमेंट की गतिविधि को सेवाओं की आपूर्ति के रूप में माना जाता है और लाइसेंसधारक को रिवर्स चार्ज के तहत रॉयल्टी या किसी अन्य रूप में भुगतान की गई राशि पर कर का भुगतान करना आवश्यक है।
राजस्थान उच्च न्यायालय ने शिवालिक सिलिका बनाम भारत सरकार (2021) 43 टैक्सलोक.कोम 149 (राजस्थान) निर्णय दिनांक 17.12.2021 के मामले में माना कि हालांकि रायल्टी पर जीएसटी का मामला अभी सुप्रीम कोर्ट के 9 जजों की बैंच के समक्ष विचाराधीन है लेकिन इस आधार पर विभाग को नोटिस देने तथा डिमांड निकालने से नहीं रोका जा सकता है। यदि कार्यवाही को रोका जायेगा तो साक्ष्य एवं सामग्री के खो जाने का डर है। इस निर्णय से स्पष्ट है कि भले ही मामला सुप्रीम कोर्ट के समक्ष विचाराधीन है लेकिन न्यायालय ने कार्यवाही जारी रखने से मना नहीं किया है। उक्त निर्णय में उच्च न्यायालय ने कहा कि -
याचिकाकर्ता ने इस याचिका के द्वारा कारण बताओ नोटिस दिनांक 14 अक्टूबर 2021 जो कि सहायक आयुक्त केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर के द्वारा पारित किया गया है को चुनौती दी है। इस कारण बताओ नोटिस के द्वारा विभाग ने याचिकाकर्ता से यह बताने को कहा है कि क्यों नहीं उससे 46.61 लाख रुपए की सेवा कर की राशि केंद्रीय वित्त अधिनियम 1994 की धारा 73(1) के तहत ब्याज और पेनल्टी सहित वसूल की जाए । कारण बताओ नोटिस को चुनौती देने का मुख्य मुद्दा यह है कि खनन पर भुगतान की गई रॉयल्टी पर किसी तरह का कोई सेवा कर नहीं लागू नहीं होता है । याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने जोर देकर कहा कि खनन पर लगने वाली रॉयल्टी पर सेवा कर के भुगतान का मुद्दा माननीय सर्वोच्च न्यायालय की 9 न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष लंबित है इसलिए इस स्टेज पर सेवा कर की वसूली करना उचित नहीं है। अधिवक्ता महोदय ने न्यायालय का ध्यान माननीय गुजरात उच्च न्यायालय के द्वारा तथा इसी न्यायालय की एकल बेंच के द्वारा दिए गए निर्णय की तरफ दिलाया। दोनों पक्षों को सुनने के बाद तथा रिकॉर्ड का अवलोकन करने के बाद माननीय न्यायालय ने फरमाया कि वह निम्नलिखित कारणों से इस रिट याचिका को स्वीकार नहीं करना चाहते हैं - 1. सर्वप्रथम तो यह है कि यह याचिका कारण बताओ नोटिस के विरुद्ध दाखिल की गई है यानी कि इस मामले में अभी न्याय निर्णय पारित करने की कार्यवाही पूरी नहीं हुई है। हालांकि कारण बताओ नोटिस के विरुद्ध भी यह न्यायालय रिट याचिका मंजूर कर सकता है बशर्ते मामला क्षेत्राधिकार से संबंधित हो। यानी कि जिस अधिकारी ने कारण बताओ नोटिस जारी किया है उसका कोई क्षेत्राधिकार नहीं हो तो यह न्यायालय याचिकाकर्ता को यह नहीं कहेगा कि वह नोटिस का जवाब दें। लेकिन इस मामले में जो मुद्दा है वह पहले ही याचिकाकर्ता के विरुद्ध जा चुका है। हमने उदयपुर चेंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री बनाम भारत सरकार के मामले में दिए गए निर्णय में रॉयल्टी पर सेवा कर के मुद्दे को सरकार के पक्ष में डिसाइड किया है। इसके अलावा पश्चिम बंगाल राज्य बनाम केसोरम इंडस्ट्रीज एवं अन्य में पांच न्यायाधीशों की पीठ के द्वारा दिया गया निर्णय भी सरकार के पक्ष में है। क्योंकि अब यह मामला सर्वोच्च न्यायालय ने 9 न्यायाधीशों की पीठ को सौंप दिया है इसका यह मतलब नहीं है कि हम विभाग को नोटिस जारी करने और निर्णय पारित करने से रोके। यदि हम हर किस कार्यवाही को इस आधार पर रोकने लगे कि समान मुद्दा हायर फोरम के पास लंबित है तो हमें यह शंका है कि कितने ही मामलों में साक्ष्य नष्ट हो जाएंगे । माननीय न्यायालय ने याचिकाकर्ता की रिट याचिका को खारिज कर दिया - शिवालिक सिलिका बनाम भारत सरकार जरिए केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड, मुख्य आयुक्त, सीजीएसटी जयपुर जोन (2021) 43 टैक्सलॉक.कॉम 149 (राजस्थान)
लखविन्दर सिंह की याचिका खारिज
माननीय सुप्रीम कोर्ट ने लखविन्दर सिंह द्वारा पेश याचिका को अपने निर्णय दिनांक 04.01.2022 द्वारा खारिज कर दिया है। दिनांक 04.01.2022 को जारी आदेश उदयपुर चेम्बर ऑफ कामर्स एण्ड इण्डस्ट्रीज एवं अन्य बनाम भारत सरकार के मामले में दिया गया है। इस आदेश में लखविन्दरसिंह एवं अन्य याचिकाकर्ताओं की याचिका को माननीय सुप्रीम कोर्ट ने इस आधार पर खारिज कर दिया कि वह पहली ही बार में सीधे उसके समक्ष पेश याचिकाओ पर सुनवाई करने का इच्छुक नहीं है। पिटीशनर्स को संबंधित राज्यों के उच्च न्यायालयों के समक्ष याचिका पेश करनी चाहिए। इसके साथ ही न्यायालय ने उदयपुर चेम्बर ऑफ कामर्स एण्ड इन्डस्ट्रीज के मामले में पिटीशन स. 37326/2017 पर सुनवाई के लिए आगे की तिथी निर्धारित की।
यह निर्णय हमारी इजी टैक्स जीएसटी ओन लाईन लाइब्रेरी में उदयपुर चेम्बर ऑफ कामर्स एण्ड इन्डस्ट्रीज बनाम भारत सरकार (2022) 44 टैक्सलोक.कोम 104 (सुप्रीम कोर्ट) के साइटेशन के साथ उपलब्ध है। इस निर्णय के अनुसार राजस्थान उच्च न्यायालय के निर्णय जिसमें रायल्टी पर सर्विस टैक्स को सही माना गया था के विरूद्ध पेश याचिका पर अभी कोई निर्णय माननीय सुप्रीम कोर्ट ने पारित नहीं किया है। लखविन्दर सिंह का निर्णय टैक्नीकल कारणों से खारिज हुआ है उसमें रायल्टी पर जीएसटी लगना चाहिए या नहीं इस पर कोई निर्णय नहीं दिया गया है। इस कारण हमारी राय में अभी यह मामला विचाराधीन है तथा माननीय सर्वोच्च न्यायालय जब तक इस मामले में अंतिम निर्णय नहीं दे देता है असमंजस की स्थिति बनी रहेगी। जो व्यवहारी जीएसटी चुका कर इनपुट क्लेम करने की स्थिति में है उन्हे इसका इंतजार नहीं करना चाहिए बल्कि टैक्स चुका देना चाहिए।
राजस्थान उच्च न्यायालय ने भी दिया स्टे
रायल्टी पर जीएसटी आरोपित करने के मामले में राजस्थान उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय दिनांक 21.04.2022 द्वारा रायल्टी पर जीएसटी वसूल करने पर रोक लगा दी है। न्यायालय ने इंडिया सीमेंट लिमिटेड बनाम स्टेट ऑफ तमिलनाडू के मामले में माननीय सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को ध्यान में रखते हुये यह स्टे प्रदान किया है। साथ ही उच्च न्यायालय ने कहा कि उदयपुर चेम्बर आफ कामर्स एण्ड इन्डस्टी के मामले में भी माननीय सुप्रीम कोर्ट ने रायल्टी पर सर्विस टैक्स लगाये जाने के निर्णय पर स्टे प्रदान किया हुआ है। इस कारण राजस्थान उच्च न्यायालय ने रायल्टी पर जीएसटी लगाये जाने से संबंधित मामले में स्टे प्रदान कर दिया।
श्री बंसत भण्डार ईट उद्योग बनाम भारत सरकार (2022) 47 टैक्सलोक.कोम 060 (राजस्थान) के इस निर्णय से राजस्थान के व्यवहारियों को काफी लाभ होगा तथा उन्हे जो नोटिस आदि जारी किये जा रहे थे उन से उन्हे सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आने तक राहत प्राप्त होने का रास्ता खुल गया है। हालांकि प्रत्येक मामले में अलग स्टे लेना पड़ेगा। |